
शादियां तो हर धर्म संस्कृति में ही होती है लेकिंन शादियों में मुहूर्त विचार केवल हिन्दू संस्कृति का ही एक मात्र अंग है .
शादियों में मुहूर्त
मानव जीवन का चतुर्थ भाग विद्या प्राप्ति के पश्चात विवाह संस्कार से आरम्भ होता है। प्राचीन समय में शादियों में मुहूर्त विचार भारतवर्ष के लोग विद्याध्ययन के बाद ही विवाह करते थे
हिन्दूशास्त्र विवाह एक धार्मिक संबंध है। अन्य जाति वालों ने जो इसे एक साधारण संबंध समझ रखा है, जो कि ठीक नही हैं, क्योंकि एक दूसरे घर की कन्या एक अपरिचित आदमी के साथ संबंधित होकर जीवन भर सुख दुख की संगिनी बनती है।
आजकल के नवयुवको की जो यह धारणा है कि जो कन्या मिल जाए बस वही ठीक है बड़ी ही भूल की बात है। जब तक वर वधू का मानसिक तत्व, शारीरिक तत्व, बुद्धि, धार्मिक भेद आदि का परस्पर मेल न हेा तबतक केवल मन बन्ध का सम्बंन्ध अति दुःखदायी और उपद्रवी हो जाता।
मैं स्वयं अपना उदाहरण देता हूँ मैने जोश में आकर जिस कन्या से बिना कुंडली मिलाए विवाह रचाया था वह मंगली थी जबकि मैं मंगली नहीं था इसका असर यह हुआ कि जब कन्या का मंगल का विंशोत्तरी दशा काल आरम्भ हुआ तब मुझे हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगे जो की जीवन भर का रोग बन गए है.
हाँलाकि इलाज आदि करने पर बन्द तो हो गए लेकिन मानसिक कमजोरी हमेशा के लिए बन गए है।
जहाँ तक हो सके प्रति मनुष्य को उचित है कि विवाह से पहले ऋषियों द्वारा दी गई पद्धति का प्रयोग व ज्योतिष शास्त्र के अनुकूल पूर्ण विचार के बाद ही पुत्र या कन्या का विवाह करना चाहिए।
राशि परिचय में मैं पहले ही राशियों का परिचय दे चुका हूँ अतः यदि अग्नितत्व वाले का विवाह जल तत्व वाले से कर दिया जाए तो परिणाम यह होगा कि एक दूसरे के दोनों जीवन भर शत्रु बने रहेंगे।
पाराशर, वशिष्ठ, जैमिनि, अत्रि आदि भारत के ऋषियों ने अपनी दिव्य दृष्टि से, अनुभव से तथा अनेक प्रकार से जाँच विचार कर स्वार्थ रहित होकर यह पता लगाया कि मनुष्य के हितार्थ बहुत सी रीतियाँ बना कर रख छोड़नी चाहिए। जान बूझ कर उन सब शिक्षओं और रीतियों का उल्लंघन करना मानो अपनी संतान को काँटों की सेज पर सुलाने के बराबर है।
बहुत से लोग कुंडली मिलाने को एक असुविधा जनक खेल समझते हैं परन्तु दुःख की बात है कि जब हमें कपड़े सिलवाने होते हैं तो अच्छे दर्जी को सारे शहर में ढूंढते फिरते हैं। परन्तु जब उसी मनुष्य को किसी के विवाह के लिये वर या कन्या को खोजना पड़ता है तो उसके लिये कुंडली मिलाना हेाता है तो मन चंचल हो जाता है।यह भी याद नहीं रहता कि किसी के जीवन भर के साथी की खोज हो रही है।
जनता से अनुरोध है कि ऐसे कष्टों की परवाह न कर विवाह के पूर्व ही निम्न लिखित नियमों पर या किसी पुस्तक में लिखे हुए इस प्रकार के नियमों को खूब निश्चय करके विवाह करें।

1 वर के सप्तम स्थान का स्वामी जिस राशि में हो यदि वह राशि कन्या की भी हो तो विवाह उत्तम होता है।
2यदि कन्या की राशि , वर के सप्तमेंश का उच्च स्थान हो तो विवाह अच्छा होता है।
3 वर के सप्तमेंश का नीच स्थान यदि कन्या की राशि हो तो भी अच्छा हेाता है।
4 वर कर का शुक्र जिस राशि में हो यदि कन्या की राशि भी वही हो तो यह भी अच्छा होता है।
5 वर के सातवे भाव की राशि यदि कन्या की राशि हो तो विवाह अच्छा हेाता है।
6 वर का लग्न स्वामी यदि जिस राशि में हो वही राशि कन्या की भी हो तो विवाह सुखदायी होता है।
7 वर के चंद्र लग्न से सप्तमस्थान में जो राशि हो वही राशि यदि कन्या का जन्म लग्न हेा तो विवाह बहुत शुभ हेाता है।
8 वर की चंद्र राशि से सप्तम स्थान पर जिन 2 ग्रहों की दृष्टि हो, वे ग्रह जिन राशियों में बैठे हों उन राशियों में से किसी राशि में यदि कन्या का जन्म हो तो वह विवाह भी उत्तम होता है। उपर्युक्त दो नियमों का विचार कन्या की कुंडली से भी होता है।

ऊपर कंुडली में सप्तमेश बुध तुला राशि में है। इसलिये यदि कन्या तुला राशि की हो तो विवाह अच्छा होगा।
द्वितीय नियमानुसार, सप्तमेश बुध का उच्चस्थान कन्या राशि है। यानि यदि कन्या का चन्द्रमा कन्या राशि का हो तो विवाह उत्तम होगा।
तृतीय नियमानुसार सप्तमेश बुध मीन में नीच होता है इस कारण यदि कन्या मीन राशि की होे तो विवाह योग बढ़िया हेागा।
चोथे नियमानुसार इस कुण्डली में शुक्र तुला का है। इस कारण यदि कन्या की तुलाराशि हो तो उस कन्या के साथ विवाह उत्तम होगा।
पंचम नियमानुसार इस कंुडली में सप्तम स्थान मिथुन का है। यदि कन्या की मिथुन राशि हो तो भी विवाह उच्छा हेागा।
छठे नियम के अनुसार लग्नेश गुरू मिथुन में बैठा है।अतः यदि कन्या भी मिथुन राशि की हो तो विवाह शुभ होगा।
सप्तम नियमानुसार इस कंुडली में चंद्रमा मीनराशि में है, उस के सप्तम कन्या राशि हुई अतएव यदि कन्या का जन्म लग्न कन्या राशि हो तो विवाह सुखदायी होगा।
अंत में अष्ठम नियमानुसार चन्द्रमा से सप्तम कन्या राशि पर कंेवल शनि की दृष्टि है और शनि धन राशि में है इस कारण यदि धन लग्न में कन्या का जन्म हो तो भी विवाह शुभदायक होगा।
नियमों में से यदि एक भी लागु हो तो विवाह शुभ हेागा और यदि एक से अधिक हो तो कहने ही क्या। अच्छा तो यह होगा कि पिता अपने पुत्र की कुंडली को उक्त प्रकार से विचार कर देख ले। कि मेरे पुत्र के लिए किस किस राशि वाली कन्या उत्तम होगी।
उपरोक्त जातक का विवाह कन्या से दो प्रकार से शुभ होता है। यदि तुलाराशि या मिथुन राशि वाली कन्या से विवाह होता तो अत्युत्त्म होता, नही ंतो मीन और कन्या राशि एवं कन्या और धन लग्न वाली कन्या से विवाह होना भी शुभ ही होगा
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