
राजयोग एक ऐसा शब्द जो बताता है जो आया है वो पाएगा पर कब ? ये तो बस
दोस्तों हर आदमी की दिली तमन्ना होती है कि वो ये जान जाए की मुझे जीवन में क्या मिलने वाला है? कब मिलने वाला है ?और कितना मिलने वाला है? सुखद बात यह है कि इन सब ही प्रश्नों का उत्तर भारतीय ज्योतिष के पास है। जी हाँ, राजयोग 2 में हम ये ही बताने वाले है.
यदि इसका जवाब ज्योतिष के पास ना होता तो भला भारतीय ज्योतिष हजारों सालों से ज्योतिष जगत में टिक पाती! हमारे पूर्व मनीषियों ने अथक साधनाएं करके ही तो इन प्रश्नों का जवाब लोगों के लिए तलाशा था।
राजयोग से मतलब एक ऐसे योग से है जो मनुष्य को जीवन में धन, संपत्ति पद व यश देते हैं। किसे कितना मिलेग? इसका हल कंुडली के बल, योगकारक ग्रहों के बल तथा व्यक्ति की परिस्थिति व वातावरण से ही जाना जा सकता है।
राजयोग 2 कैसे होगा?
समान शक्ति के राजयोग होने पर भी देखा गया है कि लोगों का जीवन स्तर अलग अलग है। कल्पना कीजिए कि किसी की कुंडली में पिता की सम्पत्ति प्राप्त करने का योग है तो उस उस सम्पत्ति की वास्तविक मात्रा तो पिता की अर्जित सम्पत्ति की मात्रा से प्रभावित होगी ही।
मध्यम वर्ग के व्यक्ति को मिलने वाली पैत्रिक सम्पत्ति की मात्रा उसके पिता द्वारा अर्जित की गई सम्पत्ति के अनुसार होगी और एक धनी पुत्र को मिलने वाली सम्पत्ति की मात्रा उसके पिता द्वारा छोड़ी गई सम्पत्ति के अनुंसार ही होगी। सबको अपनी हैसियत के अनुसार ही मिलेगी। दोनों की कुंडली में पैत्रिक सम्पत्ति प्राप्ति के योग होते हुए भी दोनों की वास्तविक उपलब्धियों में अंतर रहेगा।
एक और उदाहरण देखिये एक ठेले पर सामान बेचने वाले और एक मिल मालिक के लिए माना कोई वर्ष तरक्की तथा लाभ का आता है। दोनों में समान बल वाले योग हैं, लेकिन ऐसा होते हुए भी एक ठेले वाले के लाभ की असली रकम मिल मालिक के लाभ की रकम से कई गुना कम ही होगी।
कहने का मतलब है कि कंुडली में राजयोग है तो इसका तात्पर्य यह नहीं कि फंला व्यक्ति राजा हो जाएगा।
योगों का वास्तविक प्रभाव ऊपर बताई गई दूसरी बातों से भी प्रभावित होगा। यही कारण है कि राजयोग वाले लोग सरकारी नौकरी या अच्छे व्यापारी अथवा बड़े नामी भी देखे जाते हैं। कुछ चुने हुए राजयोग इस प्रकार से हैं।
किस किस तरहा के राजयोग ?
1.केन्द्र के स्वामी ग्रह का त्रिकोण के स्वामी ग्रह से सम्बन्ध राजयोग कारक है।?
नवमेश दशम में और दशमेश नवम में हो। यह एक सर्वोत्तम प्रबल राजयोग है। इसे क्षेत्र संबंध कहते है। यानि जब ग्रहों की स्थिति इस प्रकार से हो कि एक की राशि में दूसरा हो तथा दूसरे की राशि में पहला हो तो यह क्षेत्र संबंध कहलाता है। इसे स्थान विनिमय संबंध भी कहते है। अनुभव बताता है कि क्षेत्र संबंध ही सबसे बलवान होता है।
नवमेंश व दशमेश नवम या दशम में एक साथ बैठे हों। इसे सहावस्थान संबंध कहते हैं, यानि जब दोग्रह एक स्थान में एक साथ बैठे हों।
नवम में नवमेंश या दशम में दशमेंश अथवा दोनों में से एक ग्रह अपने स्व स्थान में हो।
लग्नेश व दशमेंश का किसी शुभ स्थान में एकत्र होना।
6 दशमेंश व लग्नेश का स्थान सम्बन्ध होना।
दो या तीन ग्रह उच्च राशि, स्वराशि मित्र राशि या नवांश में शुभ स्थानों में होना।
नीच राशि का वक्री ग्रह शुभ स्थान में होना।
बलवान ग्रह का केंद्र व त्रिकोण में स्थित होना।
एकादशेश का लग्नेश, पंचमेश, धनेश या चतुर्थेश से सम्बन्ध होना।
लग्न या चन्द्रमा से 6-7-8 भावों में बुध, गुरू, शुक्र तीनों हो तो प्रबल शुभ राजयोग होता है।
12.चन्द्रमा से दूसरे या बारहवें स्थानों में बलवान शुभ ग्रह होना।
चतुर्थेश व नवमेश एक दूसरे से कंेद्र स्थानों 1-4-7-10 में स्थित होंना।
14 सूर्य से दूसरे स्थान में चन्द्र को छोड़कर कोई शुभ ग्रह होंना।
15 सूर्य से बारहवें स्थान में या दूसरे व बारहवें स्थान में शुभ ग्रह का होना।
16.जब कोई दो ग्रह परस्पर एक दूसरे को पूर्ण दृष्टि से देखते हों उनमें उनमें दृष्टि संबंध माना जाता है।
यहां दी जा रही कुंडली पंडित जवाहर लाल नेहरू की है। जो कि 14 नवंबर 1889 रात्रि 3-35 प्रातः को हुआ था। चंद्रमा गुरू व मंगल त्रिकोणेश हैं ओर चंद्रमा,शुक्र शनि, मंगल केंद्रेश है। कर्क लगन में मंगल को श्रेष्ठ कारक माना जाता है। लेकिन केंद्रेश व त्रिकोणेश मंगल तृतीय में है जहाँ कन्या शुभ राशि है। अतः राजयोग (दशमेश़़ पंचमेश का मंगलकृत फल) भंग नहीं हुआ है। क्या आप समझते हैं कि पंडित नेहरू के राजयोग में कोई कमी थी।केंद्रश व त्रिकोणेश का संबंध कंुडली में कहीं भी हो तो वह सफलता दायक होता है।
