
एक ही वृक्ष के दो विपरीत फल . भाई-बहनों का सम्बन्ध विभिन्न रीति रिवाजो द्वारा जिसे जोड़ा गया है कोई भी झुठला नहीं सकता है
भारतीय ज्योतिष शास्त्र मे कुंडली के तीसरे स्थान को भाई-बहनों का सम्बन्ध के रूप में जाना जाता है लेकिन यहा एक पते की बात ये है की ग्यारहवे स्थान को बड़े भाई बहनों के लिए जाना जाता हे ।
भाई
शब्द से ज्योतिष शास्त्र भाई व बहन दोनों का ही विचार किया जाता हैं। तीसरे भाव का स्वामी भाइयों संबंधि बातों के विचार के लिए उपयोगी होता है। तीसरे स्थान में स्थित ग्रहों से भाई बहनों से संबंधित बातों का विचार होता है।
तीसरे स्थान में शुभ ग्रह हो, तीसरे भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो, तृतीयेश बली हो, उच्च हो, तृतीयेश पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तीसरे भाव के दोनों ओर शुभ ग्रह हों ये सारी बातें भाई बहनों से रिश्तें निभाने में और बनाये रखने में एक शुभ संकेत plus point के रूप में है।
तीसरे भाव में शुभ ग्रह हो उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि भी हो साथ ही तृतीयेश शुभ स्थान में बैठा हो ऐसे जातक को अनेक भाई बहनों का सुख होता है।
बारहवें भाव स्थित तृतीयेश और मंगल पर यदि पाप ग्रह की दृष्टि हो या यदि तीसरे स्थित मंगल पर पाप ग्रह की दृष्टि हो या तीसरे स्थान में पाप ग्रह बैठा हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो अथवा तीसरे स्थान के दोनों और पाप ग्रह बैठे हों तो भाई बहनों में से किसी एक की शीघ्र जातक से पहले मृत्यु होती है।
तीसरे छठे अथवा बारहवे भाव में मंगल अथवा तृतीयेश की स्थिति हो तो जातक को भाई का सुख नहीं होता है।
भाई-बहनों का सम्बन्ध
तृतीयेश यदि राहू अथवा केतू के साथ 6.8.12 भाव में बैठा हो तो जातक victime के भाई की मृत्यु बाल्यावस्था (child hood period)में ही हो जाती है।
यदि तृतीयेश और एकादशेश 6.8.12 भावगत न होकर शुभ स्थानों में हों तो ऐसे लोगों को भाई बहनों का भरपूर सुख होता है।
तृतीयेश यदि पाप युक्त हो तो भाई अथवा बहनों में से किसी की मृत्यु शीध्र होने का भय होता है।
यदि तीसरे भाव में रवि हो तो छोटे भाई का, शनि हो तो बड़े भाई का, यदि मंगल हो तो किसी एक का पाप दृष्टि में होने पर नाश होता है।
भाई-बहनों का सम्बन्ध

उदाहरण कुंडली मे तृतीयेश गुरू ग्यारहवें में मंगल रवि का संगी हो कर अस्त है छोटे भाई की 40 की अवस्था में मृत्यु हुई। गुरू को यहां पुरूष कारक के रूप में समझें। अब तीसरे भाव में केतू के साथ सप्तमेंश चंद्रमा है यानि बहन को यानि बहने को पति से क्लेश के कारण अलग रहना पड़ा है।
यदि तृतीय भाव से केंद्र या त्रिकोण में यानि लग्न से 6.7.9.11.12 में कोई पाप ग्रह हो तो बड़े भाई का नाश होता है। यदि इन्हीं स्थानों में शुभ ग्रह हों तो विपरीत फल यानि शुभ फल होता है। वैसे ज्योतिष शास्त्र में तीसरे स्थान में पाप ग्रह का रहना अच्छा कहा जाता है लेकिन यह छोटे बहिन भाइयों के लिए हानिकारक है।
यदि तृतीयेश लग्न में अथवा लग्नेश के साथ हो या तृतीय में ही हो तो जातक के बाद जन्मने वाले भाई बहन जीवित रहते है।
ज्योतीषिय उक्ति जंसा है कि यदि नवम भाव में सिंह राशि में सूर्य हो तो भाई का नाश होता है। यदि दैव कृपावश बच जाए तो विख्यात होता है।
सारांश conclusion
ऊपर लिखी हुई बातों का सारांश conclusion यह है कि यदि सब प्रकार से तृतीय स्थान अशुभ हो तो बाल अवस्था में भाइयों का नाश होता जाय और यदि मिश्रित हो अर्थात तीसरे स्थान में शुभ और अशुभ दोनों का योग हो तो भ्राता दीर्घायु होता है। परंतु जातक को भाई संबंधित शोक भी अवश्य होता है और इसी प्रकार भ्रातृकारक मंगल के बलवान होने से भी भ्राता अल्पायु होता है।
भाइयों के जन्म का अनुमान
2-3-9-7 भावों के स्वामियों की दशा में जातक के भाइयों के जन्म की संभावना होती है। लेकिन यहाँ जातक माँ-बाप का जीवित रहना भी देख लेना चाहिए।
तृतीयेश व तीसरे स्थान में स्थित ग्रहों में से जो बलि हो उसकी दशा में भाई का जन्म कहंे।
भाइयो बहनो से प्रेम संबंध
आजकल के महौल को देखते हुए यह भी जरूरी है कि जातक का अपने भाइयों व बहनों से प्रेम संबंध होगा अथवा नहीं।
सर्वार्थचिंतामणिकार के अनुसार यदि लग्नेश व तृतीयेश में मित्रता हो तो भाई बहनों में प्रेम संबंध होता है और यदि शत्रुता हो तो शत्रुता होती है।
विशेष- यहाँ मैत्री को हमें पंचधा मैत्री चक्र के अनुसार ही देखनी चाहिए। क्योंकि नैसर्गिक मैत्री में तो लग्नेश की तृतीयेश से मित्रता होती ही नहीं है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है।
मान लें किसी का जन्म मेष लग्न है इस तरह तृतीयेश बुध हुआ मंगल बुध तो सम हैं लेकिन बुध का मंगल शत्रु है। यदि जातक का वृष लग्न हो तो लग्नेश शुक्र हुआ और तृतीयेश चंद्रमा होगा चंद्रमा का शुक्र सम है और शुक्र का चंद्रमा शत्रु है।
यदि लग्नेश और तृतीयेश परस्पर शुभभावगत हों अर्थात लग्नेश से तृतीयेश अथवा तृतीयेश से लग्नेश आपस में केंद्रवर्ती अथवा त्रिकोणवर्ती हो अर्थात जहाँ पर तृतीयेश अथवा लग्नेश हो, वहाँ से लग्नेश अथवा तृतीयेश केंद्र में हो अथवा त्रिकोण में हो तो जातक भाई-बहनो सें संबंध प्रेमपूर्ण रहता है।
यदि 6-8-12 में लग्नेश और तृतीयेश परस्पर पड़े हों तो भाई बहनों के संबंधो में विरोध रहता है।


दोनों भाइयों का चंद्रमा कर्क में ही है, इस कारण दोनों भाइयों में भेद न हो सका। रामचंद्रजी की कंुडली में लग्न कर्क जल तत्व राशि का है और भरत जी का लग्न भी मीन जलतत्व राशि का है। अतः दोनों भाइयों के प्रेम में भेद न हो सका इसीलिये तो भरतजी ने रामचंद्र से विरोध से करानेवाली माता के मंत्र का उल्लंधन कर राज्यलोलुपता को विषवत त्याग दिया और पूज्य भाई के चरण पादुका की सेवा कर संसार को भ्रातृ प्रेम के उच्चादर्श का पाठ सिखाया।
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