ग्रहो के संबंध भी मनुष्यों के सामान होते है जैसे की मित्र,सम, शत्रुता. आइये इन संबंधो को और विस्तृत रूप से जाने.

लग्नों के अंतर्गत ग्रहों के संबंध
मेष लग्न में इन ग्रहों के संबंध शुभ होते है जैसे सूर्य गुरू का मित्र होता है.। लेकिन शनि बुध शुक्र दोनो शत्रुता रखते हैं। चंद्र मंगल तटस्थ रहते हैं।शुक्र विशेष कर मारक होता है। लेकिन यदि गुरू व शुक्र एक साथ हों तो गुरू का शुभत्व कम हो जाता है।
वृषभ लग्न में ग्रहों के संबंध
शनि बुध का शुभ मित्र संबंध होता है। लेकिन गुरू शुक्र चंद्र तीनों शत्रुता रखते हैं। सूर्य तटस्थता रखता है। चंद्र, मंगल, गुरू, व शुक्र मारक होते हैं। लेकिन अकेला शनि राजयोग कारक होता है।
मिथुन लग्न में
शुक्र शुभ ग्रह होता है। सूर्य व मंगल शत्रुता रखते हैं। चंद्र यहां ताकतवर नहीं होता है। अगर शनि व गुरू एक साथ हों तो मेष के समान फलदाय हेाते हैं।
कर्क लगन में
मंगल गुरू का शुभ मित्र संबंध होता है। शुक्र व बुध देांनो शत्रु होते हैं।शनि व अन्य क्रूर ग्रह मारक होते हैं। मंगल प्रबल योग कारक होता है।
सिंह लग्न में
मंगल व गुरू का शुभ मित्र संबंध होता है। बुध व शुक्र शत्रु होते हैं। बुध व अन्य क्रूर ग्रह मारक का काम करते हैं। गुरू और शुक्र का योग यहां राजयोग नहीं बनाता है।
कन्या लग्न में
शुक्र व बुध मित्र होते हैं। मंगल गुरू व चंद्र आपस में दोनों शत्रु होते हैं। मंगल व अन्य क्रूर ग्रह मारक होते हैं। शुक्र यहां मारकेश होकर भी मारता नहीं।
तुला लग्न में
शनि व बुध दोनों मित्र होते हैं।गुरू, सूर्य, मंगल इनमें शत्रुता होती हैं। मंगल, गुरू सूर्य मारक का काम करते हैं। चंद्र व बुध राजयोग कारक होते हैं।
वृश्चिक लग्न में
गुरू व चंद्र मित्र होते हैं। बुध, मंगल, शुक्र शत्रु होते हैं। बुध व अन्य क्रूर ग्रह मारक का काम करते हैं।लेकिन यहां गुरू मारक नहीं बनता है।
धनु- लग्न में
मंगल सूर्य बुध यहां आपस में मित्रवत होते हैं। शुक्र इनका शत्रु होता हैं। शनि व शुक्र यहां मारक का काम करते हैं। शुक्र अत्यन्त कष्ट कारक ग्रह होता है।
मकर- लग्न में
शुक्र और बुध आपस में मित्रवत होते हैं। चंद्र, मंगल, गुरू दोंनो से शत्रुता रखते हैं। मंगल मारक होता है अशुभ ग्रहों के साथ होने पर साथ ही यह यहां क्रूर भी होता है।लेकिन शुक्र यहां सर्वोत्तम होता है।
कुम्भ- लग्न में
शुक्र यहा एक शुभ ग्रह होता है। चंद्र मंगल व गुरू शत्रुता रखते हैं। गुरू , चंद्र व मंगल यहां मारक होते हैं। शुक्र पुनः उत्तम होता है।
मीन- लग्न में
चंद्र व मंगल दोनों मित्र होते हैं। शनि, शुक्र, सूर्य, बुध शत्रु होते हैं। शनि व बुध विशेषकर मारक होते हैं।यद्यपि मंगल अशुभ है लेकिन मारक नहीं होता है।
जब ग्रह मारक होते हैं तो साधाणतः सूर्य और चंद्र मारक नहीं होंते हैं। अन्य ग्रह यदि मारक है, और दोषयुक्त (अशुभ प्रभाव में) हैं, तब ही वे मौत का करक बनते हैं। कोई भी मारक अपनी अन्तर्दशा में मृत्यु का कारक नहीं बनता, बल्कि और अशुभ ग्रह या ग्रहों की दशाओं में वह मारक बनता है।
इन मैत्री संबंधों केाई परिवर्तन नहीं होता है। इस प्रकार इसे नैसर्गिक मैत्री कहते हैं। यह मैत्री स्वाभाविक है।नैसर्गिक मैत्री में विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि ग्रहों की परस्पर मैत्री तो ठीक है जैसे रवि का मित्र गुरू है तो गुरू का भी मित्र रवि है। परन्तु सब ग्रहों का ऐसा सम्बन्ध नहीं होता है। कोई ग्रह किसी से मैत्री तो मानता है, परन्तु दूसरा ग्रह उससे शत्रुता रखता है जैसे चंद्र, बुध से मै़त्री रखता है लेकिन बुध, चंद्र से शत्रुता रखता हैं इसी प्रकार परस्पर मैंत्री में कहीं
कहीं विरोध होता है। यह नीचे के टेबल में समझाया गया है।
मैत्री संबंध सूचक ग्रह
1 स्थाई मेत्री | तात्कालिक मेत्री | ||||||
ग्रह | मित्र | शत्रु | सम | ग्रह | मित्र | शत्रु | |
रवि | चं,म,गु, | ,शु,श, | राहू बुध | रवि | चं,म,गु,शु,श, | ||
चाँद | रवि,बुध | राहू | म गु शु श | चाँद | र बु श राहू | म गु शु | |
मंगल | र, चं , गु | बुध राहू | शु शनि | मंगल | र बु श | च शु गु राहू | |
बुध | र शु राहू | च | म गु श | बुध | र,च गु शु राहू | शनि | |
गुरु | र च म | बु ,शु | श राहू | गुरु | र बु श राहू | च म शु | |
शुक्र | बु श राहू | राहू च | म गु | शुक्र | र बु श राहू | च म गु | |
शनि | बु शु राहू | र च | म गु | राहू | र च बु गु शु श | म | |
राहू | बु शु श | र च | म गु | ||||
- यहां हम ग्रहों के संबंधो की बात कर रहे हैं तो बताते चले कि इनके लिए ज्योतिष तालिका उपलब्ध करवाई जाती है जिसे हम यहां उल्लिखित कर रहे हैं
- नैसर्गिक मैत्री चक्र
मूल त्रिकोण
ग्रह | सूर्य | चंद्र | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि | राहू | केतू |
राशि | 5 | 2 | 1 | 6 | 9 | 7 | 11 | 11 | 5 |
उच्चंश | मे 10 | वि-3 | म -28 | क-15 | कर्क 5 | मीन 27 | तुला 20 | ||
मूलांश | सिंह 20 | वृष 27 | मेष 12 | कन्या 10 | धनु 10 | तुला 15 | 20 |
जिस प्रकार ग्रहों का विशेष अधिकार उच्च के संबंध में बता चुके हैं उसी प्रकार एक और प्रकार का अधिकार होता हैं उसे मूल त्रिकोण कहते हैं। यह अधिकार उच्च से कम होता है।
नीचे टेबल में बताया हैं कि किस राशि के कितने अंश पर होने से ग्रह मूल त्रिकोण में होता है। गुछ ग्रह की राशियाँ स्वक्षेत्र भी हैं। मूल त्रिकोण भी है और उच्च भी हैं, इसका स्पष्टीकरण करने के लिए यह भी यह चक्र में बताया गया है। कि कितने अंश पर मूल त्रिकोण और कितने अंश तक उच्च या स्वक्षेत्र है। स्वक्षेत्र अधिकार से मूल त्रिकोण अधिकार बड़ा होता है।
पंचधा मेत्री चक्र | |||||
ग्रह | अधिमित्र | मित्र | सम | शत्रु | अधि श |
रवि | चं,म,गु, | बु | श,शु रा | 0 | |
चाँद | र बु | श | रा | म गु शु | |
मंगल | र | श | च गु बु | शु | |
बुध | र शु रह | म गु | च | श | |
गुरु | र | श रा | म बु | 0 | शु |
शुक्र | बु श रा | 0 | र | म रा | च |
शनि | श रा | गु | र च म बु | 0 | रा |
राहू | बु शु श | गु | र च | 0 | म |
कुंडली मे ग्रेहो की स्थिति के आधार पर पंचधा मेत्री चक्र निर्मित किया जाता हे