
सूर्योदयास्त के समय को यदि 8 भागो में बांटे तो 8वे हिस्से का नाम गुलिक होता इसे छाया ग्रह भी कहते है. निर्माण को गुलिक बनाने की विधि से जानेंगे .
एक छाया ग्रह है।
गुलिक बनाने की विधिके अंतर्गत जानेगे की इसे किस प्रकार से बनाया जा सकता है। पंचाग में प्रति दिन का दिनमान दिया रहता है। इस दिनमान के आठ भाग किये जाते है। हर भाग के एक अधिपति की कल्पना की जाती है। और जिस भाग में शनि की कल्पना की जाती है उस भाग को अर्थात शनि के खंड को गुलिक कहते हैं।
हर खंड के कल्पना करने की रीति यह है कि जिस दिन का गुलिक बनाना हो (यदि दिन का जन्म है तो) उसी से वारादिक्रम की गणना की जाती है।
जैसे रविवार के दिन का गुलिक बनाना है तो पहिले खंड का अधिपति रवि, दूसरे का चंद्र, तीसरे का मंगल, चौथे का बुध, पाँचवें का गुरू, छठे का शनि, लेकिन याद रहे कि आठवें खंड का कोइ अधिपति नहीं होता है।
इस दिन सप्तम खंड गुलिक खंड हुआ।फिर यदि बुध वार के दिन का गुलिक खंड निकालना हो तो प्रथम खंड का अधिपति बुध ही होगा। द्वितीय खंड का गुरू, तृतीय का शुक्र, चतुर्थ का शनि पंचम का रवि, छठे का चंद्र, सप्तम का मंगल होगां और अष्टम का अधिपति तो होता ही नही है। बुधवार को दिन के समय में शनि चतुर्थ खंड का अधिपति होने के कारण चतुर्थ खंड का स्वामी गुलिक हुआ। इसी प्रकार और सब वारों का भी शनि तथा गुलिक खंड जाना जाएगा।
रात्रि गुलिक जानने की विधि
लेकिन रात का गुलिक जानने में अंतर है। रात में जन्म होने से रात्रिमान में के आठ भाग कर वाराधिपति से पंचम ग्रह प्रथम खंउ का अधिपति होता है। इसी तरह क्रमशः गणना करने से जिस खंड का अधिपति शनि होगा वही खंड उस रात्रि का गुलिक होगा।
रविवार की रात्रि को गुलिक जानने के लिए रात्रिमान के आठ भाग करने पड़ेंगे। हर भाग का एक अधिपति सुनिश्चित किया जाएगा और पहले खंड का स्वामी रवि न होकर पंचम गुरू होगा, इसी प्रकार दूसरे का शुक्र, तीसरे का शनि, चौथे का रवि, पंचम का चंद्र, सप्तम का मंगल और अष्ठम का अधिपति तो होता ही नहीं है। इस कारण रविवार की रात्रि का गुलिक रात्रिमान के तीसरे खं ड में हुआ।
इसी प्रकार यदि मंगल की रात्रि का गुलिक खंड जानना हो तो मंगल से पंचम वाराधिपति अर्थात शनि का प्रथम खंड का अधिपति होगा। द्वितीय का रवि तृतीय का चंद्र, चतुर्थ का मंगल, पंचम खंड का बुध, षष्ठ का गुरू और सप्तम का शुक्र अधिपति हुआ। अष्टम का अधिपति तो होता ही नहीं। इससे मालूम हुआ कि मंगलवार की रात्रि का प्रथम खंड ही गुलिक खंड होता है।
दिन का खंड रात्रि का खंडवार
वार | 1 | 2 | 3 | 3 | 4 | 5 | 6 | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | |
रवि | रवि | चन | म | बु | गुर | शु | श | गुर | शु | श | रवि | चन | म | बु | |
चन | चन | म | बु | गुर | शु | श | रवि | शु | श | रवि | चन | म | बु | गुर | |
म | म | बु | गुर | शु | श | रवि | चन | श | रवि | चन | म | बु | गुर | शु | |
बु | बु | गुर | शु | श | रवि | चन | म | रवि | चन | म | बु | गुर | शु | श | |
गुर | गुर | शु | श | रवि | चन | म | बु | चन | म | बु | गुर | शु | श | रवि | |
शु | शु | श | रवि | चन | म | बु | गुर | म | बु | गुर | शु | श | रवि | चन | |
श | श | रवि | चन | म | बु | गुर | शु | बु | गुर | शु | श | रवि | चन | म | |
sun | mon | mar | mer | jup | ven | sat | |
7 | 6 | 5 | 4 | 3 | 2 | 1 | in day time |
3 | 2 | 1 | 7 | 6 | 5 | 4 | in night time |
चक्र का मूल्यांकन
चक्र 2
शनि का खंड मंदि
ब्ृाहस्पति का खंड यमकंटक
मंगल का खंड धूम- मृत्यु योग संज्ञक
सूर्य का खण्ड काल योग
बुध का खंड आधा प्रहर
शुक्र का खंड कोदण्ड, इंद्रचाप या कार्मुक
चक्र का मूल्यांकन
चक्र में देखने से पता चलता है कि किस खंड का स्वामी कौन होगा ओर शनिखंड पर विशेष ध्यान आकर्षित होने के लिए ऐसा- चिन्ह दिया है।अर्थात किस वार व रात में कौन गुलिक खंड होता है।
चक्र 2 में गुलिक का धुवांक दिया है। गुलिक लग्न बनाने की रीति यह है कि जिस खण्ड का अधिपति शनि हेै? उसकी जो संख्या अर्थात ध्रवांक हो उसी संख्या से दिन अथवा रात्रि के अष्टम भाग को गुणा करने पर जो दंडादि आये उसी इष्ट पर लग्न साधन करने से जो राशि होगी वही गुलिक का स्पष्ट होगा।
याद रहे कि यदि दिन का जन्म हेा तो अष्टम भाग के गुणा करने पर जो दंडादि आवेगा वही गुलिक का इष्ठदंड होगा। परन्तु यदि रात्रि का जन्म हो तो उक्त विधि से पाये हुए अंक में दिनमान जोड़ने के उपरान्त जो इष्ट दंडादि आयेगा वही गुलिक का इष्टदंड होगा और उसी इष्ट पर गुलिक लग्न बनाना होगा।
बी सूर्यनारायण राव एक महान ज्योतिषाचार्य हुए है उन्होंने ‘सर्वार्थ चिन्ता मणि’ नामक ग्रंथ से उद्धरण देते हुए एक अलग प्रकार से गुलिक बनाने की रीति बताई है। अर्थात यदि शनिवार का जन्म हो तो 1, रविवार का2, सोमवार का 3, मंगलवार का 4, इत्यादि। इस वारसंख्या को 4 से गुणा कर ओर गुणनफल से 2 घटा कर जो शेष रहे वही गुलिक लग्न होता है।
उपसंहार
जैसे माना जन्म दिन बुध वार है। शनिवार से आरम्भ करने पर बुध वार 5 वां वार होता है। अतः 5 को 4 से गुणा करने से 20 हुआ और उससे 2 घटाया तो 18 रहे। इस 18 को इष्ट दंड मान कर लग्न सारिणाी चक्र के अनुसार लग्न 5/3 होगा। (संदर्भ अज्ञात)
