
दोस्तो हमने अपने पिछली पोस्ट मे गुलिक कैसे बनाते है इसे सीखा था यहा अब हम जानेंगे की गुलिक के फल क्या क्या होते है
भाव स्थित गुलिक के फल
1 यदि गुलिक लग्न
मे हो तो जातक रोगी होता है, विलासी, चोर, क्रूर, विनय रहित, शिक्षा विहीन, बलहीन, नेत्र रोगी, दुखी लमपट,बुद्धिहीन, और कम आयु वाला होता है।यदि लग्न मे गुलिक के साथ पाप ग्रह भी हो तो जातक शठ, दुराचारी,धोखेबाज और दुखी होता है
2-यदि गुलिक द्वितीय
भाव में हो तो जातक व्यसनी, दुखी, क्षुद्र, भ्रमण शील, कलही, धनरहित, परदेशवासी और कटुभाषी होता है। यदि यहां गुलिक के साथ पाप ग्रह भी हो तो जातक निर्धन एवं विद्या रहित होता है।
3- यदि गुलिक तृतीय
भाव में हो तो जातक शेखीबाज, सबसे अलग रहने वाला, मादक द्रव्य सेवन करने वाला, अत्यन्त क्रोधी शोक एवं भय से रहित, राजा से पूजित सज्जनों से प्रिय ग्रामादि का मालिक और धार्मिक होता है। ( यहां यह विरोधी कथन इसलिये है क्योंकि यदि ग्रह शुभ हो तो परिस्थिति वश इस प्रकार के फल होते है।)
4-गुलिक यदि चतुर्थ
भाव में हो तो जातक विद्यारहित और गृह, धनसुख, पृथ्वी एवं वाहनादि से रहित भ्रमणशील, रोगी पित्तादि,वात, पित्तादि विकार से पीड़ित तथा पापी होता है।
5- गुलिक यदि पंचम स्थान में हो तो जातक शीलरहित, अव्यवस्थित चित्त, क्षुद्र, स्त्रियों के अधीन, नपुंसक अथवा कम संतान वाला, अल्पायु और नास्तिक होता है।
6 यदि गुलिक छठे गुलिक कैसे बनाते
स्थान में हो तो शत्रुओं का हनन करने वाला, पे्रतादि विद्या से प्रेम रखने वाला, शरीर से पुष्ट, शूर होता है।
7- यदि गुलिक सातवें
स्थान में हो तो जातक झगड़ालू, सब जनों का विरोधी, कृतघ्न, और मंद बुद्धि होता है।ऐसे जातक की स़्ित्र संताप देने वाली अथवा क्रूर होती है। कभी कभी जातक की कई पत्नियाँ होती है।
8- यदि गुलिक अष्टम
स्थान में हो तो मुख, नेत्र दोष, के कारण सर्वांग से कुरूप, गुण वर्जित, क्रोधी और क्रूर होता है।
9- यदि गुलिक नवम स्थान में हो तो जातक कुकर्मी, (वह अपने माता पिता एवं गुरू जनों की हत्या में तत्पर हो जाता है।) बहुतों को क्लेश देने वाला एवं झूठा होता है।
10 यदि दशम स्थान
में हो तो जातक कुल धर्म, एव आचार से च्युत और अनेकानेक लज्जा रहित कार्य करने
वाला होता है। आत्मसम्मान एवं प्रतिष्ठा रहित होता है।
11- यदि गुलिक एकादश
स्थान में हो तो जातक सुखी, धनी, तेजस्वी, रूपवान, प्रजाध्यक्ष, और बन्धु प्रिय होता है। परंतु उसके भाई की मृत्यु होती है। ऐसे जातक की स्त्री अच्छी होती है।
12 यदि गुलिक द्वादश
स्थान में हो तो जातक का वेष, विषय रहित अर्थात ओढ़ना पहरना साधु के जैसा होता है। वह दीन वाक्य बोलने में प्रवीण और उसी के कारण धनसंग्रह करने में माहिर होता है।
ग्रहो के साथ
13- यदि गुलिक के साथ सूर्य हो तो माता को क्लेश देने वाला,
मंगल के साथ हो तो जातक छोटे भाई से रहित,
बुध के साथ हो तो उन्मत्त गुरू के साथ हो तो पाखंडी एवं धार्मिक विचारों से रहित,
शुक्र के साथ हो तो जननेंद्रिय रोग से पीड़ित होता है और नीच स़्ित्रयों का पति
तथा शनि के साथ हो तो जातक सुख एवं विहार आदि में लीन और अल्पायु होता है। उसे कुष्ठआदि का भय रहता है।
यदि राहु के साथ हो तो जातक को कारावास भय होता है। अथवा किसी विष के प्रकोप से रोगी होता है।
यदि केतु के साथ हो तो जातक आग लगाने वाला और बखेड़िया होता है।
यदि गुलिक विष घटिका में हो तो जातक राजा होने पर भी भिखारी हो जाता है।
इस प्रकार से अपने जाना की कुंडली में शनि की एक विशेष परिस्थिति जिसे गुलिक कहते है के क्या क्या फल हो सकते है.