
बनी हुई कुंडली को देखना या कंप्यूटर से कुंडली बनाना एक ही बात है लेकिन अपनी कुंडली स्वयं बनाओ इसको यहाँ बताना हमारा उद्देश्य है.
हम सब ये भली प्रकार जानते हैं कि सूर्य से दिन रात एवं मौसमों का निर्माण होता है। हिन्दू ज्योतिष परम्परा में एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक एक दिन माना जाता हैं। जब सूर्य ठीक सिर के ऊपर होता है तो दोपहर हो जाती है।
पृथ्वी समतल न होकर संतरे की तरह से अपने ध्रुवों पर चपटी है। यानि नारंगी जैसी हैं और अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है।इसे सिद्ध होता है कि पूर्व के देशों में सूर्य सूर्य पहले दिखाई देगा। पश्चिम के देशों में बाद में दिखाइ देगा, इस प्रकार सब स्थानों पर सूर्योदय का समय असमान हैं।
लोकल टाइम
पहले ही हम देख चुके हैं कि पूर्व के देशों में सूर्य पहले दिखाई देता है तथा पश्चिम के देशों में बाद में दिखाई देता है। इसलिये हर जगह का टाइम अलग होता है।
लेकिन समय के बीतने की दर में समानता लाने के लिए और कठिन गणितीय गणना से बचने के लिए स्थानीय औसत समय लोकल मीन टाइम का मान लिया जाता है।
ये समय किसी भी स्थान के अक्षाश और देशांतर पर निर्भर करता है। ज्योतिष में हम सबसे पहले दिए हुए समय को स्थानीय समय में बदलते हैं।
मानक समय यानि साइडेरियल टाइम
किसी भी स्थान से देश बड़े होते हैं। लेकिन आने जाने की सुविधाओं के बढ़ जाने के कारण तथा संचार साधनों के विकास के कारण देश एक इकाई हो गया है। डाक, तार टेलिफोन कम्प्यूटर मोबाइल सब आपस में इंटरनेट आदि सुविधाओं से जुड़ गए हैं। इसलिये देशों को अपने लिए एक समय की आवश्यकता पड़ी। इसके लिए हर देश के हर शहर को एक समय चाहिए।
सन 1906 में यह निर्णय लिया गया कि 82डिग्री 30 कला पूर्व देशान्तर को भारत का मानक मध्याहन रेखा के रूप में लिया जाएगा। यह भारत का मानक समय साइडेरियल टाइम है। सभी संचार के साधनों में इस ईकाई का उपयोग सुनिश्चि किया गया।तभी से हमारी घड़ियाँ ने भी यही समय अपना लिया था।स्थानीय समय की आवश्कता अब नहीं रही है। इसलिये ज्योतिष में मानक समय से स्थानीय समय निकाला जाता है।
ग्रीन विच रेखा का औसत समय
आजकल लगभगसारे संसार में ही एक समय माना जाने लगा हैं वह है ग्रीन विच समय। ग्रीनविच के मध्य से गुजरने वाली रेखा से ही मध्याहन देखा जाता है। इसी के अनुसार देशों का मानक समय सुनिश्चित होता है
समय का परिवर्तन?
हमने देखा है कि पृथ्वी 24 घंटे में 360 डिग्री घूम लेती है।
360 डिग्री/24 घण्टे
360डिग्री =24×60 मिनट
1अंश =24×60=4 मिनट 360
इस नियम के द्वारा हम एक स्थान के समय से दूसरे स्थान के समय में परिवर्तन कर सकते हैं हमें केवल याद रखना हेगा कि जो देश ग्रीनविच के पूर्व में स्थित हैं उनके देशीय समय को ग्रीनविच के समय में से घटाया जाता है।
उदाहरण स्वरूप भारत की मान क मध्याहन रेखा का देशांतर 82 डिग्री 30 कला पूर्व है तो मानक समय क्या होगा?
अपनी कुंडली स्वयं बनाओ
1डिग्री=4 मिनट
82डि-30 मिनट×4 सैकेण्ड
=328 मि 4 सैकेंड
=330 मिनट
= 5 घंटे 30 मिनट
भारत क्योंकि ग्रीनविच रेखा से पूर्व में स्थित है इसलिये इसके समय को ग्रीनविच के समय में 5 घंटे 30 मिनट जोडे़ जाएंगे।जब ग्रीन के समय में 12 बजें का समय होता है तो भारत में 5-30 का समय होता है।
औसत समय संस्कार
यह वह समयावधि है जिससे किसी देश के मानक समय से उस स्थान के स्थानीय औसत समय को मालूम करने के के लिए प्रयोग किया जाता है। स्थानीय औसत समय की शुद्धि को या तो मानक समय में जोड़ा जाता है या घटाया जाता है। यह बात इस पर निर्भर करता है कि मानक स्थान से हमारा स्थान पूर्व में स्थित है तो मानक समय में अंतर को जोड़ा जाएगा और यदि पश्चिम में स्थित है तो मानक समय में से अंतर को घटाया जाएगा।
जैसे भारत का मानक स्थान पश्चिम है तो 82-30 अंश कला है। दिल्ली का देशांतर 77 अंश 13 कला है तो दिल्ली पश्चिम में स्थित हुई अंतः अंतर घटाया जाएगा।
80डि 30 कला – 77डि 13 कला=5 डि 17 कला
1 डि = 4 मिनट
5डि×4 +17×4 सैकेण्ड
17×4 सैकेण्ड =20 मि. $ 68 सैकेण्ड
अगर भारतीय औसत मानक समय में से 21 मि 8 सैं घटा दिये जाएंगे तो दिल्ली का स्थानीय समय निकल आएगा। जैसे घड़ी में शाम के 5 घंटा 30 मिनट है तो दिल्ली का स्थानीय समय = शाम के (5घं 30मि)-(0-21मि 8 सै.)
5घंटा 30 मिनट 00 से.
(-)21मि. 8 सै. = 5घं 8 मि, 52 सै
इस तरह किसी स्थान का मानक समय से स्थानीय औसत समय निकाला जाता है।
12 भाव स्पष्ट करना
कुण्डली बनाने से पहले हमें लग्न बनाने के लिए कुछ जानकारियां जुटानी पड़ती हैं वह है जन्म समय, जन्म का स्थान, व जन्म की तारीख।
लग्न की परिभाषा-
जन्म के समय पूर्व में किसी निश्चित स्थान पर कोई राशि उदित हो रही होती है वही जातक का लग्न होती है।
लग्न साधन करना- “अपनी कुंडली स्वयं बनाओ“
लग्न साधन के लिए हमें साइडेरियल टाइम यानि सम्पातिक काल की जरूरत होती है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 24 घंटे में एक चक्र पूरा करती है लेकिन पृथ्वी का चक्र जब किसी निश्चित तारे के संदर्भ में होता है तो 24 घंटे से 3 मिनट 56 सैकेण्ड कम लगते हैं।
साइडेरियल टाइम
इस प्रकार जो समय बनता है उसे साइडेरियल टाइम कहते है। लग्न निकालन के लिए हमें लाहिड़ी की टैबल ऑफ असेंडेट नामक पुस्तक लेनी होती है साथ ही उसकी निश्चित साल की ग्रहांश देखने के लिए एफेमेरीज की जरूरत होती है। या किसी साल का पत्रा भी लिया जा सकता है।
टेबल आफ असेंडेंट की सहायता से पहले साइडेरियल टाइम निकाला जाएगा। साइडेरियल टाइम के लिए पृष्ठ सं.2 पर दी हुई टेबल की सहायता लेंगे यह प्रतिदिन का सम्पादिक काल दोपहर के 12 बजे स्थानीय समयानुसार सन 1900 का बताती है।
संदर्भ टेबल (टेबल आफ असेंडेंटं) एन सी लाहिड़ी
जातक की जन्म तारीख 19-3-2015
जन्म समय 20घंटा 40 मिनट
जातक का जन्मस्थान दिल्ली (पूर्वरेखांश 77अंश 13 कला-अ़क्षांश 28-39)
पृष्ठ संख्या 2 टेबल 2 व पृष्ठ 4टेबल 2के अनुसार
hour | min | sec | |
20ः40= | 23 | 45 | 23 |
2015 का अनंश संस्कार | + 36 | ||
कुल टोटल | 23 | 45 | 59 |
पृ5टे3,दिल्लीका संस्कार | + 3 | ||
दिल्ली कासाइडेरियल टाइम | 23 | 46 | 2 |
दिल्ली का रेखांश 77-13 | भारतीय मध्यरेखांश 82डि-30मि |
दिल्ली का मध्य रेखांश से अंतर | = -5डि 17कला |
दिल्ली का मध्य रेखांश | 5डि17मि×4 मि =21मि8सै |
जन्म समय 20 घंटा 40 मिनट भारतीय मानक समय स्थानीय समय संस्कार
(-) 21.8 है क्योकि दिल्ली रेखांश मध्य रेखांश से पश्चिम अर्थात कम है इसलिए स्थानीय संस्कार घटाया जाएगा।
जातक का जन्म दोपहर 12 बजे से कितना पहले या बाद में स्थानीय समय अनुसार हुआ ज्ञात करना होता है।
Hour | Min | sec | |
जातक का जन्म स्थानीय समय अनुसार | 20 | 18 | 52 |
– 12 | 00 | 00 | |
दोपहर 12 और जन्म समय तक का समयांतर | 8 | 18 | 52 |
जन्म 12 बजे के बाद का अंतर समय H8: M18: Sec 52 दोपहर 12 बजे के बाद हुआ। इसलिए दोपहर 12 वजे के सम्पातकीय समय में 8 घं 18 मि 52 सैं जोड़ दिये जायेंगे।पेज 5 टेबल 4
hour | min | sec | ||
दोपहर से जन्म समय तक का अंतर | 8 | 18 | 52 | |
दोपहर से जन्म समय तक साइडेरियल अंतर | 8 | 20 | 14 |
अर्थात जातक का जन्म स्थानीय सा टा अनुसार 8-20-14 पर दोपहर 12 के बाद हुआ इसलिए 12 बजे के सा टा में 8’20-14 जोड़ देंगे
यदि जन्म दोपहर 12 के साइडेरियल काल से पहले हुआ होता तो यही अंतर घटाना होता।)
सम्पातकीय समय दी गई जन्म तारीख
hour | min | sec | |
मानक समय और स्थान अनुसार | 23 | 46 | 02 |
मानक समसे | 8 | 18 | 52 |
जन्म समय तक का अंतर और स्थान अनुसार | 32 | 04 | 54 |
hour | min | sec | ||
घड़ी का मान 24 से अधिक नहीं होता | 32 | 04 | 54 | |
घटाएंगे | – | 24 | ||
इसलिये 19-3-15 को साइडेरियल टाइमहोगा। | 08 | 04 | 54 |
टेबल में दिल्ली के अंक्षाश के आधार पर पृष्ठ 48
पर उक्त साइडेरियल टाइम पर लग्न
rashi | अंश | क्ला | |
08 | 04 | 54 | |
साइडेरियल समय अनुसार लग्न | 06 | 04 | 10 |
2015 का अयनांश संस्कार – | 1 | 5 | |
अर्थात तुला राशि का लग्न है। | 06 | 03 | 05 |
इसे ही ज्योतिष में इष्ट काल भी कहते है |
अपनी कुंडली स्वयं बनाओ
दशम भाव साधन
किसी निर्धारित समय पर उस स्थान की मध्याहन रेखा क्रांतिवृत को जिस स्थान पर काटती है उस स्थान को दशम भाव कहते हैं।
इस प्रकार दशम भाव स्पष्ट करंगे। दशम भाव के लिए पृष्ठ सं 8 पर दी गई सारिणी अनुसार गणित करेंगे। यह सारिणी सभी स्थानों अर्थात पृथ्वी के सभी शहरों के लिए एक ही होती है।
इस सारिणी का प्रयोग उसी तरह करेंगे जेसे लग्न स्पष्ठ के लिए किया था
जन्म समय समपातिक काल समय 8घं 4मि 54 सै
तालिका अनुसार 08 घं 4 मि सम्पादकीय काल के लिए उदित दशम भाव
इस तरह से 10 दशम भाव स्पष्ट कर्क राशि 5 अंश 52कला
राशि | अंश | काला | |
लग्न स्पष्ट | 6 | 4 | 10 |
10शम स्पष्ट | 3 | 05 | 12 |
अंतर | 2 | 27 | 17 |
2×30=60+27=87 अंश/6=14अंश32क 10वि
6ठा भाग 14अं 32क 10वि का हुआ
भाव | राशि | अंश | कला | भाव | राशि | अंश | कला | ||
10 | 3 | 5 | 52 | 1 | 6 | 3 | 5 | ||
14 | 32 | 15 | 2 | 50 | |||||
10+11 | 3 | 20 | 24 | 1+2 | 6 | 18 | 7 | ||
14 | 32 | 15 | 2 | 50 | |||||
11 | 4 | 4 | 56 | 2 | 7 | 4 | 10 | ||
14 | 32 | 15 | 2 | 50 | |||||
11+12 | 4 | 19 | 28 | 2+3 | 7 | 19 | 13 | ||
14 | 32 | 15 | 2 | 50 | |||||
12 | 5 | 4 | 0 | 3 | 8 | 4 | 16 | ||
14 | 32 | 15 | 2 | 50 | |||||
12+1 | 5 | 32 | 50 | 3+4 | 8 | 19 | 19 | ||
14 | 32 | 15 | 2 | 50 | |||||
1 | 6 | 3 | 5 | 4 | 9 | 4 | 21 |
दशम भाव में जोड़ते जाने से 10 से लग्न तक के भाव व दशम भाव में 6 जोड़ने से 4था भाव स्पष्ट प्राप्त हेगा। फिर लग्न में से चौथा भाव घटाने पर प्राप्त अंशों को लग्न में जोड़ते जाने से 1से 4 भाव स्पष्ट प्राप्त होंगे। फिर सभी प्राप्त भावों में 6 जोड़ने से बाकी बचे भाव प्राप्त होंगे।
भाव | राशि | अंश | कला | से | राशि | अंश | कला | तक |
1 | 6 | 3 | 5 | 6 | 18 | 25 | ||
2 | 7 | 3 | 15 | 7 | 19 | 5 | ||
3 | 8 | 4 | 25 | 8 | 19 | 45 | ||
4 | 9 | 5 | 52 | 9 | 20 | 24 | 10 | |
5 | 10 | 4 | 52 | 10 | 19 | 28 | 30 | |
6 | 11 | 4 | 0 | 11 | 14 | 32 | 50 | |
7 | 0 | 3 | 5 | 1 | 18 | 25 | ||
8 | 1 | 3 | 45 | 1 | 19 | 5 | ||
9 | 2 | 4 | 25 | 2 | 19 | 45 | ||
10 | 3 | 5 | 52 | 3 | 20 | 24 | ||
11 | 4 | 4 | 52 | 4 | 19 | 25 | ||
12 | 5 | 4 | 0 | 5 | 14 | 32 |
ग्रह स्पष्ट करना
कुंडल निर्माण के इस क्षेत्र में ग्रह स्पष्ट करते हैं यानि कोन ग्रह किस रेखांश पर स्थित है इसकी चर्चा करेंगे। नव ग्रहों की राशि चक्र में क्या स्थिति थी अर्थात किसी राशि के किस अंश पर कौन ग्रह स्थित था को जानेंगे। इसके लिए हमें एफेमेरीज या लग्न की जरूरनत पड़ती हैं एन सी लाहिड़ि द्वारा बनाई गई कंडेंड एफेमेरीज में ग्रहों की स्थिति अर्थात रेखांश सुबह 5.30 बजे के दिये होते हैं। 12 महिनों की स्थिति वर्षों के क्रम में दी गई हैं जिसे जिस सन का ग्रह स्पष्ट देखने हो उस वर्ष मास दिन का अवलोकन कर सकता हैं।
उदाहरण भाव स्पष्ट के गणित के आगे जैसा कि हमने जन्म तारीख 19मार्च 2015 जन्म समय 20ः40 शाम स्थान दिल्ली के अनुसार भाव स्पष्ट किये थे अब ग्रह स्पष्ट करेंगे। एफेमेरीज में ग्रहों की स्थिति को ध्यानमें रखते हुए गणित संधान किया जाएगा।
नोट :- हम यहाँ ग्रह स्पष्ट को आर्य भट्ट पंचागंम् से ले रहे है जहाँ दिल्ली के अंक्षांशो के आधार पर सुबह 5ः30 के ग्रह स्पष्ट दिये गये हैं।
चंद्र स्पष्ट के रेखांश प्रातः 5ः30 बजे 19-3-2015 को चंद्र 10रा 14अं 6क 30विक
24 घंटे या एक दिन में चंद्र की चाल 15॰अंश 10क 14विक
हमने यहाँ 19 और 20 मार्च की चंद्र की स्थिति ली है। क्योंकि हमारा समय इन दोनों के मध्य हुआ है।
क्योंकि जन्म 19 मार्च प्रातः 5ः30 के बाद हुआ है इसलिए यह जानना आवश्यक है कि जन्म प्रातः 5ः30 बजे के कितने घंटों बाद हुआ हैं अर्थात दिये गये समय में से 5ः30 मि घटा देंगे।
जन्म समय 20 : 40
प्रातः – 5 30
15 10 घंटे और मिनट
इसलिये चंद्र की 15 घं 10 मि में क्या चाल रही यह निकालना होगा।
24 घंटे में चंद्र की चाल = 15अं 10क 44विकला तो 15घंटे 10 मिनट में कितनी होगी तो इसी प्रकार से सभी ग्रहों का गणित यहां किया गया है।
सुबः5:30 के ग्रह स्पष्ट | |||||||||
ग्रह | राशि | अंश | कला | विकला | राशि | राशि | कला | विकला | |
सूर्य | 11 | 4 | 35 | 39 | 11 | 3 | 59 | 28 | |
चन | 10 | 23 | 42 | 12 | 10 | 14 | 6 | 3 | |
मंग | 11 | 00 | 55 | 58 | 11 | 26 | 27 | 32 | |
बुध | 10 | 2 | 34 | 42 | 10 | 14 | 57 | 35 | |
गुर | 3 | 4 | 9 | 53 | 3 | 19 | 11 | 47 | |
शुक | 0 | 8 | 35 | 2 | 0 | 7 | 49 | 32 | |
शनि | 7 | 10 | 49 | 43 | 7 | 10 | 49 | 47 | |
राहू | 5 | 16 | 45 | 25 | 5 | 16 | 47 | 18 | |
केतू | 11 | 16 | 45 | 25 | 11 | 16 | 44 | 8 |

यहाँ हमने सभी ग्रह (एस्ट्रोलाजिकल टेबल फोर आल) किताब के द्वारा
स्पष्ट किए हे ये पुस्तक ज्योतिष के लिए बहुत उपयोगी हे
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विंशोत्तरी दशा साधन विधि
ज्योतिष में घटानायें कब घटेंगी अर्थात उनके होने का समय क्या होगा इसको बताने के लिए जो दशा पद्धति प्रचीन समय से चला आ रही है उसे विंशोत्तरी दशा पद्धति कहते हैं।सभी ग्रहों की महादशओ ंको जोड़ 120वर्ष हैं। हमारे महर्षियों ने जीवन को 120 वर्ष का माना हैं। महादशा की गणना करने के लिए जन्म कालीन चंद्रमा की स्थिति के आधार माना जाता हैं। चंद्रमा जन्म समय जिस राशि में रहता हैवह जातक की जातकीय राशि होती है चंद्र जिस नक्षत्र में होता है वहजातक का नक्षत्र होता है। नक्षत्र का जो स्वामी ग्रह होता है उसी की दशा जन्म समय मानी जाती है।
सूर्यादि ग्रहों का विंशोत्तरी दशा क्रम सूर्य 6 वर्ष, चंद्र 10 वर्ष, मंगल 7 वर्ष, राहू18 वर्ष, गुरू 16 वर्ष, शनि 19 वर्ष, बुध 17 वर्ष केतू 7 वर्ष, शुक्र 20 वर्ष इस प्रकार से है। महादशाओं का क्रम भी तद्नुसार ही है।
वैसे आपको बताते चले कि ज्योतिष शास्त्र में महादशा को 120 साल का ही क्यों गिना जाता है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार मनुष्य का शरीर 30 अंगुल का यानि 5 फुट 8 इंच का होता है। मनुष्य शरीर पर सभी नौ ग्रह ऊपर से लेकर नीचे तक शासन कारते हैं। इसमें ग्रहों का हिस्सा इस प्रकार से है।
अंगुल | युग | म दशा | |
1.5 | 4 | 6 | सू |
2.5 | 4 | 10 | चं |
1.7 | 5-4 | 7 | मन |
4.7 | 5-7 | 17 | बुध |
4 | 4 | 16 | गुरु |
5 | 4 | 20 | शुक्र |
4.7 | 4 | 19 | शनि |
कुल30अंगुल×4=120वर्षलग्न कुण्डली
हमारा चंद्र स्पष्ट कुम्भ राशि 23अं 42क 12 विकला है इससे विंशात्तरी दशा का ज्ञान किस प्रकार होगा यह समझते है। चन्द्रमा कुंभ राशि में है इसलिए सारिणी के तीसरे कोष्ठक में जिसके ऊपर जिसमें मिथुन तुला कुम्भ लिखा है वह देखना होगा। चन्द्रमा जिस राशि में हो उसी राशि से संबंधित कोष्ठक को देखना चाहिए प्रथम कोष्ठक में अंश कला दिए गए हैं। इसमें 18 अंश के सामने तुला राशि वाले तीसरे कोष्ठक में23अंश 40 कला के सामने वाले कोष्ठक में गुरू की महादशा के सामने 11साल 7 महिने 6 दिन भोग्य रहते हैं।
हमारे उदाहरण का चंद्रमा स्पष्ट कुम्भ 23 अंश 42कला 12 विकला है अब हमें 2कला के लिए पूरक सारिणी से 2 कला के लिए 14दिन मिले हैं। इस प्रकार से हमारे भोग्य काल में 14 दिन की कमी आ गई । इस प्रकार से हमारे उदाहरण की गुरू की भोग्य दशा लगभग 11 साल 6 महिने 23दिन ही है।
नोटः- यहाँ हम जिसे सारिणी का उद्धरण दे रहे हैं वह आर्यभट्ट पंचाग में मिल जाएगी चाहे पंचांग किसी भी साल का हो। तालिका पृष्ठ 138 पर है यह इधर उधर भी हो सकती है
नवांश साधन विधि
कुण्डली के ग्रहों और भावों स्थिति का नवांश देखने के लिए हमें किसी प्रकार के गणित साधन करने की आवश्यकता नहीं केवल यह देखना हे कि हमारे लग्न भावों व ग्रहों की नवांश टेबल में स्थिति कहा है। इसे हम उनके अंशो के द्वारा जान सकते है।3.20-6.40-10.00-13.20-16.40-20.00-23.20-26.40-30.00
लग्न रा 5 अं4 क17 विक11
vansh | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | धनु | 10 | 11 | मीन | |
अंश कला | |||||||||||||
3.20 | 1 | 10 | 7 | 4 | 1 | 10 | 7 | 4 | 1 | 10 | 7 | 4 | |
6-40 | 2 | 11 | 8 | 5 | 2 | 11 | 8 | 5 | 2 | 11 | 8 | 5 | |
10-00 | 3 | 12 | 9 | 6 | 3 | 12 | 9 | 6 | 3 | 12 | 9 | 6 | |
13-20 | 4 | 1 | 10 | 7 | 4 | 1 | 10 | 7 | 4 | 1 | 10 | 7 | |
16-40 | 5 | 2 | 11 | 8 | 5 | 2 | 11 | 8 | 5 | 2 | 11 | 8 | |
20-00 | 6 | 3 | 12 | 9 | 6 | 3 | 12 | 9 | 6 | 3 | 12 | 9 | |
23-20 | 7 | 4 | 1 | 10 | 7 | 4 | 1 | 10 | 7 | 4 | 1 | 10 | |
26-40 | 8 | 5 | 2 | 11 | 8 | 5 | 2 | 11 | 8 | 5 | 2 | 11 | |
30-00 | 9 | 6 | 3 | 12 | 9 | 6 | 3 | 12 | 9 | 6 | 3 | 12 |
कन्या राशि के सामने 6अंश 40 कला के अंतर्गत हमें कुंभ नवांश लगन प्राप्त हो रहा है। यही हमारा कुम्भ नवांश लगन है।इसी प्रकार से सभी ग्रहों के बारे में भी हमं पता लगा सकते है।
राशि अंश कला विकला नवांश में
ग्रह | राशि | अंश | काला | विकला | नवांश मे |
सूर्ये | 11 | 4 | 37 | 18 | सिंह |
चाँद | 10 | 23 | 41 | 34 | वृष |
मंगल | 11 | 27 | 2 | 21 | kark |
बुध | 10 | 15 | 05 | 42 | तुला |
गुरु (व ) | 3 | 19 | 9 | 53 | धनु |
शुक्र | 0 | 8 | 5 | 2 | मिथुन |
शनि | 7 | 11 | 8 | 35 | तुला |
राहू | 5 | 16 | 16 | 25 | मिथुन |
केतू | 11 | 16 | 16 | 25 | धनु |
तो इस प्रकार से आपने देखा की कुंडली बनाने का process न सिर्फ आसान है लेकिन गणितीय रूप मे बेहद श्रम की भी मांग करता है । आगे भी हम अन्ये स्थानो पर “अपनी कुंडली बनाओ” के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की कुंडलियों का निर्माण और भी विस्तार से करेंगे जिससे आपको समझ मे आ जाएगा की कुंडली का निर्माण किस प्रकार से किया जाता है.