जीवन में घटनाओ का पूर्वानुमान लगाने की कितनी ज्योतिष दशाएं है
भारतीय ज्योतिषाचार्यो ने अपनी दिव्यदृष्टि द्वारा ये पूर्वानुमान लगे की की किसी व्यक्ति को अपने जीवन कब हर्ष कब शोक प्राप्त होगा लेकिन जनसाधारण को इस बात का ज्ञान कितनी ज्योतिष दशाओ द्वारा कराया जाए इस पर वे शायद एकमत नहीं थे. अत हर एक विद्वान ने अपने हिसाब अपने दशाए प्रस्तुत की.
कितनी ज्योतिष दशाएं है
विंशोत्तरी दशा | योगिनी दशा |
कालचक्र दशा | अष्टोत्तरी दशा |
शोद्शोत्तरी दशा | पंचोत्त्री दशा |
सत-समां दशा | चतुरशीति दशा |
दविश्पति दशा | शष्टयब्द दशा |
शटत्रिशतसत दशा | चर दशा |
स्थिर दशा | केंद्र दशा |
करक ग्रेहोत दशा | ब्रह्म दशा |
मंडूक दशा | शूल दशा |
योगार्ध दशा | दृग्दशा |
त्रिकोण दशा | राशी दशा |
पंच्स्वर दशा | पिंड दशा |
अंशज दशा | नैसर्गिक दशा |
अष्टक वर्ग दशा | संध्या दशा |
पाचक दशा | तार दशा |
उपरोक्त 30 प्रकार की दशाओ में से “विन्शोत्री दशा ” सारे भारत वर्ष में लोकप्रिय है. यद्यपि दक्षिण भारत में कुछ ज्योतिशाचार्यो के द्वारा “अष्टोत्तरी दशा” का भी अनुसरण किया जाता है और उनके दवार किया गया भविष्य कथन उत्साह वर्धक होता है. “
योगिनी दशा पंजाब में प्रचलित है । विंशोत्तरी दशा का कुल दशा काल 120 वर्ष है यद्यपि इस दशा पद्धति के अंतर्गत एक मनुष्य की संभावित आयु 120 वर्ष और 5 दिन की होती है. अष्टोत्तरी दशा 108वर्ष की और योगिनी दशा 36 वर्षो की होती है । इसके 3 चक्र होते है. जिनके दशाकाल का कुलयोग 108 वर्ष ही आता है. तथा जो दक्षिण की अष्टोत्तरी दशा के बराबर ही है.
दशा व् उसके प्रकार
सभी जातको की कुंडलियो के ग्रह उनके भाग्य का निर्माण करते है. मनुष्यों का जीवन घटनाओ का पुलिंदा मात्र है. किसके जीवन में कोनसी घटना किल समाए होगी? अथवा कुंडली में स्थित ग्रह किस समाए अपना प्रभाव दिखाएगा इसके भारतीय मनीषियोंने दशा पद्धति का अनुसंधान किया.वैसे इसे दशा ना कह कर महादशा कहना चाहिए.
मनुष्य जीवन की घटनाओ का आदर्श समय निर्धारण भगवान् ने दशाओं के माध्यम से किया है. ये दशाए ही महादशा कहलाती है. प्रत्येक ग्रह की महादशा में हर ग्रह को अन्य सभी ग्रहो को अपना अपना अन्तर्दशा भोग्य काल दिया गयाहै .
अंतर अर्थात भीतरी दशा. अर्थात सभी ग्रहो की महादशा में सभी ग्रहो की अंतर दशा का भी होना. ये दशाए कितनी ज्योतिष दशाएं है आचार्यो ने कई प्रकार से निर्धारित की है. जिनका उल्लेख हम ऊपर table में कर आए है.
आशाए ये है की दशाओं का विस्तार सूक्ष्म सा सूक्ष्म अर्थात बारीकी से भरा होता है. कुछ प्रचलित दशाओ के नाम इस प्रकार है विंशोत्तरी दशा.अष्टोत्तरी दशा, योगिनी दशा.
विंशोत्तरी दशा
जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र पर होता है, उसी के अनुसा विंशोत्तरी दशा मानी जाती है. आप जानते ही है की जन्म नक्षत्र और चन्द्र नक्षत्र एक ही होता है. यदि किसी दिन कृतिका नक्षत्र पंचांग में दे रखा है तो मानना चाहिए की उस की चन्द्र कृतिका में है.
जन्म नक्षत्र चन्द्र नक्षत्र होने के कारन ही जन्म की राशी भी सामान होती है ये ही जनम नक्षत्र विंशोत्तरी दशा जाने का साधन है. जन्म के समाए कोन सी दशा चार्ल रही थी यह जाने के लिए कृतिका नक्षत्र से शुरू कर के जन्म नक्षत्र तक गिनना चाहिए इस संख्या में 9 का भाग देने से जो शेष बचे वाही दशा वर्तमान होगी.
अब आप चक्कर में पड़ की फिर कोन से दशा होगी. इसके लिए ग्रहो का दशा क्रम निर्धारित fix है सूर्य , चन्द्र, मंगल, राहू,गुरु, शनि, बुध , केतु , शुक्र
दशाओं की अवधि
सभी ग्रहो की दशाओ की अवधि अलग अलग है. सूर्य 6 वर्ष , चार्द्र १० वर्षा, मंगल 7, राहू 18, गुरु 16 वर्ष , शुक्र 20 वर्ष, शनि 19, बुध 17वर्ष, केतु 7 वर्ष,
माना किसी का जन्म नक्षत्र पूर्वषाद है तो कृतिका से गिनने से 18 वा नक्षत्र हुआ.इसे 9 से भाग देने से शून्य बचा अत अंतिम दशा शुक्र की होगी.