यहाँ आपके मनोरंजनार्थ ‘उपहार’ नाम से मात्र एक कविता प्रस्तुत की जा रही है, आशा है आपको पसंद आयगी

आप क्या प्राप्त हुए मुझे
बढ़ने लगी है,
घर की रौनक।
दीवारें मुस्कराने लगी हैं।
मेरा हाल भी
छत के जैसा हो गया है।
खिलखिलाती है
मुझे देख कर
जैसे मैं-
तुम्हें देख कर।
दर्पण व्यंग्य करता-सा लगता है,
मुंह देख कर मेरा।
रसोई बताती है,
कुछ जला है तुमसे
पर स्वाद नहीं खोया है
चटनी ने।
लोग मिलते हैं
जानने को हाल मेरा,
मै मुस्कुराता हुआ
चल देता हूं।
व्यंग्य कानों से टकराता है
‘उपहार’ कोई लगता है
मिला गया है मुझे।